शीतलाखेत मॉडल पर हो रहा काम

22 मई को जैव विविधता दिवस पर विशेष

जैव विविधता की रक्षा की दिशा में पौड़ी की अनूठी पहल

वनाग्नि से इतने विशाल जैव-विविधता का संरक्षण जनता-प्रशासन की साझा जीत

पौड़ी गढ़वाल जिला, जो 5,329 वर्ग किलोमीटर में फैला है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है। जिले का 67% हिस्सा घने जंगलों से ढका है, जिसमें जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का 60%, राजाजी टाइगर रिज़र्व का 40% और कालागढ़ टाइगर रिज़र्व व सोनानदी वन्य जीव विहार शामिल हैं। यहां 212 बाघ, 414 तेंदुए, 1,083 हाथी और 550 से अधिक पक्षी प्रजातियां निवास करती हैं। लेकिन वनाग्नि इस जैव विविधता के लिए सबसे बड़ा खतरा बनी हुई है। इस चुनौती से निपटने के लिए पौड़ी प्रशासन और स्थानीय समुदाय ने मिलकर एक अनुकरणीय मॉडल प्रस्तुत किया है, जो देश के लिए प्रेरणा बन रहा है।

 

पौड़ी जिले में अल्मोड़ा के शीतलाखेत मॉडल पर अमल किया जा रहा है। यह मॉडल वनाग्नि रोकथाम का एक आदर्श उदाहरण है। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान के निर्देशन में इसके तहत अदवाणी वन बंधु समिति का गठन किया गया है । जिसमें 11,728 ग्रामीणों को जंगलों की रक्षा के लिए शपथ दिलायी गयी है। इस समिति का लक्ष्य लोगों में जंगलों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाना और आग की घटनाओं को रोकने में सक्रिय योगदान सुनिश्चित करना है।

जनसहभागिता: बदलाव की सबसे बड़ी ताकत

इस अभियान की रीढ़ रही जनसहभागिता। जिले की 394 ग्राम पंचायतों में वनाग्नि जागरूकता शपथ कार्यक्रम आयोजित किये गये। 157 स्कूलों में बच्चों को वनाग्नि के दुष्प्रभावों के बारे में बताया गया। आड़ा दिवस के जरिए किसानों को 31 मार्च के बाद खेतों में सूखी झाड़ियां और खरपतवार न जलाने के लिए प्रेरित किया गया। इसके साथ ही, 55 ग्राम स्तरीय वनाग्नि प्रबंधन समितियों का गठन किया गया, जो ग्राम प्रधानों की अध्यक्षता में 300-400 हेक्टेयर जंगल की निगरानी करती हैं। इन समितियों को प्रोत्साहन के लिए 30,000 रुपये की सहायता राशि भी दी गयी।

तकनीक और सामुदायिक प्रयासों का तालमेल

प्रभागीय वनाधिकारी स्वप्निल अनिरुद्ध ने बताया कि पौड़ी की अनूठी भौगोलिक संरचना और विविध पारिस्थितिकी तंत्र इसे वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आश्रय बनाती है। वनाग्नि से निपटने के लिए पोलर सैटेलाइट तकनीक और 134 क्रू स्टेशनों पर 600 फायर वॉचर तैनात किये गये। इस तकनीकी-मानवीय समन्वय से आग की घटनाओं को तुरंत पहचानकर नियंत्रित करना संभव हुआ।

पिरूल एकत्रीकरण: आग रोकथाम का प्रभावी कदम

मुख्यमंत्री पिरूल एकत्रीकरण योजना ने भी इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वर्ष 2024-25 में 19,000 क्विंटल चीड़ की सूखी पत्तियां (पिरूल) एकत्र की गयीं, जो जंगल में आग का प्रमुख कारण बनती हैं। चालू वर्ष 2025-26 में अब तक 4,000 क्विंटल पिरूल संग्रहीत किया जा चुका है, जिससे न केवल वनाग्नि की घटनाएं कम हुईं, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला।

समन्वित दृष्टिकोण से वन सम्पदा का संरक्षण

प्रभागीय वनाधिकारी स्वप्निल अनिरुद्ध का कहना है कि तकनीक, मानव संसाधन और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग इस पहल की सफलता की कुंजी है। जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान कहते हैं कि जागरूक समुदाय और सही मार्गदर्शन किसी भी प्राकृतिक आपदा को रोकने की दिशा में सबसे बड़ी ताकत है।

अभियान से वनाग्नि की घटनाएं हुई कम

इस अभियान का असर स्पष्ट दिखाई दे रहा है। उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की 1,065 वनाग्नि घटनाओं की तुलना में इस वर्ष अब तक केवल 197 घटनाएं दर्ज की गयी हैं। पौड़ी का यह प्रयास न केवल जैव विविधता की रक्षा में मील का पत्थर साबित हो रहा है, बल्कि यह भी दिखाता है कि प्रशासन और जनता का साझा प्रयास पर्यावरण संरक्षण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *