गढ़वालः ‘पींडा’ गढ़वाली का शब्द है या कहीं बाहर से आकर यहीं का हो गया है, कह नहीं सकते। गूगल पर सर्च मारोगे तो शायद पींडा से मिलता जुलता शब्द पींडी देखने में आएगा जिसका अर्थ होता है घी में बने शानदार मेवे। लेकिन इससे करीब करीब अर्थ समझने में जरूर कुछ आसान हो जाएगा।
बता दें कि गांवों में गाय बैल आदि मवेशियों के लिए चावल या झंगोरे से बनाए जाने वाले पकवान को पींडा कहा जाता है। यूं तो कास्तकारों के घरों में चौखट की शान बने पालतू पशुओं के लिए पोष्टिक आहार बनना सामान्य सी बात है, लेकिन दीपावली पर्व के अवसर पर यह कुछ और खास हो जाता है। दीपावली में गाय व बैलों की पूजा अर्चना होती है। बाकायदा उनके सींगों पर तेल लगा कर उन्हें सजाया जाता है। और उन्हें वही विशेष पकवान पींडा खिलाया जाता है। पुरानों से चली आ रही इस परंपरा में पंचांग के अनुरूप ही यह सब होता है।
दीपावली के विशेष अवसर पर बनने वाले इस पींडे के बनने के समय से ही तय होता है कि दीपावली कब है। देवभूमि के पहाड़ों में जहां कास्तकारों ने इस धरा और खेत खलियानों को आबाद रखा है वहां पींडा और दीपावली के तारतम्य को समझा जा सकता है। यहां दीपावली कब है यह इससे पक्का होता है कि पींडा कब पकेगा। यानी जिस रात मवेशियों के लिए पींडा पकाया जाएगा नई सुबह मवेशियों के पूजन के साथ ही दीपों के पर्व दीपावली की होगी।
प्रकृति से मिली हर चीज को उपहार समझकर उन्हें देवतुल्य सम्मान देना देवभूमि की विशेषताओं में शामिल है। त्यौहार का कोई भी मौका हो धरती से लेकर उस पर धड़कते सभी दिलों को उल्लासित होने के अवसर यहंा की परंपराओं में रचे बसे हैं। धन धान्य के प्रतीक श्वेत क्रंाति और बंजर को आबाद करने के सूत्रधार गाय और बैलों की पूजा किसी तरह से भी लक्ष्मी पूजा से कम नहीं है। यही आर्थिकी की सबलता को प्राबल्य देते हैं।
जानकारी के मुताबिक गांवों में आज ‘पींडा’ पकेगा, और उसके पश्चात ही दीपावली का उल्लास अपने चरम के लिए आगे बढ़ेगा। सभी को ढेरों बधाइयां।